Book Title: Pravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Author(s): Bhuvansuri
Publisher: Vijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad

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Page 464
________________ ४१४ प्रवचनसार-कर्णिका वत्स! चौमासा में जैनसाधु से विहार नहीं हो सकता... है। इसलिये चौमासा पूरा होने के वाद अपने विचार करेंगे। फल्गुरक्षित विचार करने लगा कि माताने तो कहा। था कि भाई जैसा कहे वैसा करना । इसलिये माताकी आशाके अनुसार भाई कहे वैसा ही मुझे करना है। एसा विचारके बोला कि अच्छा साहब ! आप की आज्ञा के अनुसार यहीं रहूँगा। चातुर्मास में आर्यरक्षितने लधुवांधव फल्गुरक्षित को अभ्यास चालू किया । अभ्यास चढ़ता गया त्यों वैराग्य आता गया। भूतकाल का शिक्षण एसा था कि क्यों ज्यों शिक्षण ... बढ़े त्यों त्यों सदाचार, विनय, विवेक बढ़े। अंत में विराग दशा आवे । उसमें से कितनों को वैराग्य आता है। किसी को वैराग्य न आवे तो विराग दशा में गृहसंसारिमें रहते हैं। चातुर्मास के बाद आचार्यश्री तोषलीकाजी महाराजने आर्थरक्षित को बड़े ठाठ माठ के साथ महोत्सवपूर्वक आचार्य पदवी ले विभूपित किया । आर्थरक्षित अव आर्य रक्षित सूरि वन गये। साथ साथ फल्गुरक्षित आदि ग्यारह साविक युवानोंने भी इस समय परमपुनीत भागवती प्रवज्या अङ्गीकार करी । दोनों आचार्य देवों ने मंगलदेशना दी। - क्रम क्रम ले दोनों आचार्याने शिज्य परिवार के साथ आर्थरक्षित सूरिजी की जन्मभूमि नगरी तरफ प्रयाण किया। किसी शुभ मंगलके दिन उस नगरी के बाहर उद्यान में पधारे । राजा ने स्वागत किया । राजा, गुरूमहाराज

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