Book Title: Pravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Author(s): Bhuvansuri
Publisher: Vijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 468
________________ - ४१८ प्रवचनसार कर्णिका तो लाभ मिलेगा। लेकिन मार्ग में विधन आयेंगे । उस विघ्न में आप चलित हो जाओ तो ये आफत मेरे ऊपर । उतरे । इसलिये इसमें आपका काम नहीं है। बाकी तो लाभ महान हैं। वृद्ध साधुने कहा कि कितनी भी आफत आयेगी तो भी मैं सहन करूंगा। चलित नहीं बनू । इसलिये । मुझे ही मन्जूरी दो ! गुरूने कहा खुशी से जाओ । . लेकिन आफत आवे तो भी कुछ भी नहीं बोलना ।। समता भाव से सहन कर लेना। अच्छा साहव ! मथ्थयेण वंदामि । साधुवृन्द मृत शवको लेकर चलने लगा। . आचार्य महाराजने युवान भाइयों को बुलाके कह दिया कि देखो इन वृद्ध साधु की धोती खेंच लेना । और साथ साथ झनोई तोड देना । इधर साधुओं को भी समझा दिया कि जैसे ही ये युवान धोती खेंचे कि उसी समय तुम इनको चोल पट्टा पहना देना । मुनिवृन्द बाजार में आया। लोगों ने शोर वकोर चालू किया । युवान भाई साधुओं में घुस गये । और हां हुं करते वृद्ध साधुकी धोती खेंच ली। और मुछने जनोई तोड दी । इस लिये उसी समय उनको चोल पट्टा पहना दिया । होहा करता हुआ युवान भाइओं की टोली चली गई । वृद्ध. साधु ने विचार किया कि गुरु महाराज के कहे अनुसार वरावर संकट आया। इस लिये अभी में. सुछ गड़बड़ करूंगा तो गुरु महाराज को भी उपद्रव आयेगा। इस लिये गुपचुप चलने लगे। जो बना वह शान्ति से . संह लिया। . . , . . . . . . .

Loading...

Page Navigation
1 ... 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499