Book Title: Pravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Author(s): Bhuvansuri
Publisher: Vijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad

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Page 472
________________ ४२२ प्रवचनसार कर्णिका जायेंगा। इसलिये चलो न मैं ही जाता हूं। सव साधुओं को भी खवर पाड दूकि तुम्हारे विना मेरा चल सकता है। एसा मन में नक्की करके (निश्चित करके) आचार्य । महाराज से कहने लगे कि आपसे जाया जाना योग्य . नहीं है । मैं ही जाता हूं । एसा कहके झोली लेकर एक बड़ी हवेली में गयें । “धर्मलाम” कहके वे रसोड़ा ( रसोईघर) में खड़े हो गये । गोचरी कैसे लाना ? इसकी उनको खवर नहीं थी। इस लिये वहां जाके सव पातरां रख दिये। शेठानी ने महाराज के पात्र में वत्तीस लाडू रख दिये । लाडू गिने. तो हुये पूरे वत्तील। ज्ञान वल ले देखकर के वृद्ध साधु से आचार्य महाराजने कहा कि आपके बत्तीस शिष्य होंगे। यह सुनके वृद्ध मुनि प्रसन्न हो गये। वृद्धावस्था में वत्तीस शिष्यः .. हों ये कोई कम आश्चर्य की बात नहीं है। वृद्ध मुनि सुसाधु बन गये। आर्यरक्षितसूरिजी महाराजने शासन की अपूर्व प्रभावना की। ___ यह सब प्रताप किसका ? एक समकिती माता का। : जो माता समकिती न होती तो पूरा घर दीक्षित कैसे बनता? घर की स्त्रियों में धर्म चल जाय तो घर की रौनक ही वदल जाय । इसलिये घर में स्त्री सदगुणी और अर्हतधर्म के संस्कार से सुवासित होनी चाहिये। वस्तुपाल और तेजपाल को धर्मी किसने बनाया ? अनुपमादेवीने । इसलिए अगर स्त्री धर्मसंस्कारिणी होगी तो पूरे घर में धर्मकी सुवास फैलेगी? .

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