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व्याख्यान-वत्तीसवाँ
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कहा कि हम कल आयेंगे । आज तुम सव गोचरी लाकर के वापर लेना । वृद्धमुनि की गोचरी कोई लाना नहीं । और पूछना भी नहीं । सुवह मैं आऊँ उसके पोछे सव वात मैं देख लूंगा। एसा कहके आचार्य महाराज चले गए। .. मध्याह्न का टाइम हुआ । साधु गोचरी लाके वापरने चैठे । वृद्ध मुनि के मननमें एसा था कि साधू अभी मुझे वापरने को बुलावेंगे । लेकिन किसी ने बुलाया नहीं । सव साधु को गुस्सा आ गया । अरे मुनियों, आज मेरा पुन आचार्य अन्यन गये हैं इसलिए तुमने मुझे गोचरी भी नहीं लादी । मुझे पूछा भी नहीं है । और तुमने वापर ली । कल सुवह आचार्य महाराज को आने दो । फिर तुम्हारी खबर लूंगा । मुनि निश्चित थे। वृद्ध मुनि ने उस दिन उपवास कर लिया। प्रातः काल हुआ। जय घोष के शब्द से उपाश्रय गुंज उठा। आचार्य महाराज पधार गये। मंगलींक प्रवचन सुनके शावक चले गये।
वृद्ध मुनि ने आचार्य महाराज के पास हकीकत का 'निवेदन किया । आचार्य ने कहा गजब किया । अरे साधुओं, क्या तुमको ये खवर नहीं कि ये मेरे उपकारी पिता मुनि हैं ? फिर भी तुमने गई काल जैसा वर्तन किया वह उचित नहीं कहा जा सकता। और वृद्धभुनि .से कहने लगे कि कलका तुम्हारा उपवास है इसलिये
लाओ तर्पणी और में गोचरी ले आता हूं। आपकी भक्ति ' करना ये मेरी भी फरज है। एला कहके आचार्य महा
राज ने ओली और तर्पणी की तैयारी शुरू की। . :. वृद्ध साधु विचार करते हैं कि ये तो प्रभावक आचार्य इसलिए वे गोचरी को जाये तो ठीक नहीं कहा;