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प्रवचनसार कर्णिकार जीवन उनका भव्य हुआ है।
बड़ी बड़ी तपस्याओं से ज्योर्धर कहलाते हैं
वीस स्थानक और वर्षीतपसे।। वीज आठम अग्यारस चौदस
पंचमिको अपनाये हैं।" एले इस पुन्यात्माओं में
कोटि कोटि वंदन करू ॥ .
पूज्य गुरुदेव ॥१४॥ .संवत दो हजार चौवीसकी
जेठ सुदीकी पंचमी थी छः शिष्योंके साथ गुरुजी
तपावासमें ठहरे थे। गुरुदर्शनको तव है आया।
एक भक्त वेंगलोरसे जिनचन्द्र विजय के दर्शनसे..
एक स्फूर्ति नवीन है पाई
पूज्य गुरुदेव ॥१५॥ यांत्रीकीका छाता था.
फिर भी श्रद्धाधर्ममें दिखलाई ज्ञान विज्ञानकी बातें सुनके
बुद्धि सुकनकी टिकराई जिनचन्द्र विजयकी वानीसे
__ भुवन गुरुकी कहानी सुनी जालोर नगरमें सुकनराजने
संगीत कहानी गाई थी॥
पूज्य गुरुदेव ॥१६॥ -सुकतराज रंगराज कोठारी वी.ई. मेकानिकल
वेंगलोर सिटि