Book Title: Pravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Author(s): Bhuvansuri
Publisher: Vijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad

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Page 462
________________ प्रवचनसार कर्णिका इन डर श्रावक की साफक देखा देखी गुरूवंदनकी सर्व "विधि करके बैठ गये। तव आचार्य महाराज बोले कि ये नए श्रावक कहां से आये। ___ आर्थरक्षित विचार करने लगे कि मुझे नया क्यों कहा ? श्रावक गुरू महाराज को वंदन करने के बाद वहां बैठे हुये श्रारकों को दो हाथ जोड़के बैठे। हर श्रावक शुरू को दान करके बैठे तव अन्य श्रावक वहां कोई नहीं था। इसलिए श्रावक को हाथ जोड़के बटने का तो उनको प्रयोजन ही नहीं था । आर्थरक्षित वंदन करके बैठे, तब वहाँ एक श्रावक बैठा था । उनको हाथ जोड़के आर्थरक्षित को बैठना चाहिये । परन्तु वह "विधि आर्यरक्षित नहीं जानते थे इसलिये सिर्फ गुरू महाराज को वंदन कर केही बैठे । इसलिये गुरूने कहा कि ये नये श्रावक कहां से आये ? शान्तमुखाकृति ले शोभत्ते-आचार्य महाराज बोले कि महानुभाव, कहां ले आये और क्यों आयें ? साहेव ! दशघुर नगरी ले आया हूँ। और मुझे द्रष्टिवाद सूत्र पढ़ना है । आप मुझे पढ़ाने की कृपा करोगे? को नहीं पढ़ायें । लेकिन महानुभाव, द्रष्टिवाद सूत्र इल श्रावक अवस्था में नहीं वांचा जा सकता । साधु बनना पड़ेगा । तुम संसार छोड़ने लयस स्वीकार सकोगे। खुशी से लाहब! आर्यरक्षित दीक्षित वने। और गुरु महाराज के पास द्रष्टिबाद सीखने लगे। चौदह विद्या

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