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प्रवचनलार कणिका
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क्यों नहीं आई ? यह प्रश्न उसके मन में अनेक विचार उत्पन्न करने लगा। माताकी हाजरी विना का स्वागत समारोह उसे शुष्क लगने लगा। उसके मुख ऊपरले हर्ष की रेखा बदल गई । मुस ग्लानिमय बन गया।
स्वागत यात्रा शुरू हुई। सबसे आगे राज दरबारी.. सुरीले चाजे, उसके बाद सोनेके होदेले शोभते हुये गज- . राजके अपर महाराजा, तथा राजारात इलरे गजराज पर आर्यनक्षित अपने परिवार के साथ वैट, उसके बाद अश्वों के ऊपर राजमन्त्री वगैरह अधिकारी वर्ग उसके बाद श्रेष्ठी वर्ग, और सार्थपति, उसके बाद धवलसंगल गीत गाती हुई प्रसन्न नारियों और अन्तमें हजारोंकी संख्या में सैनिक चल रहे थे।
स्वागत यात्रा थार्यरक्षितके घरके पाल आने पर भोजाईयोंने सच्चे मोतियों ले उनको बधाई दी। बहाने लुछणां लिये । आयरक्षितने अपने घरमें प्रवेश किया। महाराजाने पौरजनों को स्वस्थान जानेको रजा (छुट्टी) दी । महाराज भी राजमहल में चले गये सब बिखर गये।
आर्थरक्षितने घरमें प्रवेश करके तुरन्त साताके पास जाकरके उनके चरणों में सिर झुकाया। सजल नेत्रसे माताले पूछाकि सारी नगरीके लोग सेरी स्वागतयात्रामें. आए और आप नहीं पधारी उसका क्या कारण ?
माताने कहाकि हे बेटा, तू पेट भरने की विद्या सीखके आया उसमें मैं तेरा क्या स्वागत करूं ? सुझे सिर्फ उस विद्याले सन्तोष नहीं है। मुझे तो तू तात्म . वैसवनी विद्या सीखके आवे तभी संतोय हो। - माताजी ! आपको सन्तोष देनेके लिए आप कहो