________________
३८८
प्रवचनसार कर्णिका कुमारपाल राजा-सामायिक में बैठे थे। समताभाव . में लीन बनके वैठे थे। इतने में एक मकोडा राना के पैर . . . में चिपक गया (काटने लगा)। प्रयत्न करने पर भी नहीं .. निकला। राजाने विचार किया कि अगर इसे दूर करने
जायेंगे तो मर जायगा। पसा विचार के उतनी अपनी • चमडी काटके चमड़ी सहित मंकोडे को रख दिया। अपने
को पीडा हुई उसकी परवाह नहीं करके मंझोडा को बचा लिया। कैली दया भावना!
तीन खंड के मालिक लक्ष्मणजी मृत्यु को प्राप्त हुये। वह देखकर रामचन्द्रजी के पुत्र लव और कुश को वैराग्य आया । उनको विचार आया कि अरे! तीन लंड के. मालिक और बत्तीस हजार स्त्रियों के भोक्ता एले काका मर गये । हमारी भी मृत्यु हो उसके पहले आत्मसाधना कर लेनी चाहिये। बल! वैराग्य भावना शुरू हो गई।
रामचन्द्रजी सूच्छित होके लक्ष्मणजी के शव के पास पड़े थे। बोलने की ताकत नहीं थी। वहां पुत्र आके कहने लगे कि पिताजी! काका मर गये हैं। यह दृश्य देखकर हम्हें वैराग्य आया है। इसलिये दीक्षा लेना है। तो अनुमति दो। एसा कह के दोनों पुत्र चलते बनें। पसे प्रसंग में रजा (मंजूरी) मांगना योग्य है?
दीक्षा की वात करना योग्य है ? क्या? उन्हें व्यव'हार का ज्ञान नहीं था? एसे अनेक विचार तुम्हें
आगये होंगे। ... दोनों पुत्र केवलक्षानी महात्मा के पास पहुंचे। धर्मदेशना शुरू हुई। दोनों जने देशना सुनने को वैठ गये । वैराग्य रस झरती देशना को सुनके दोनों प्रफुल्ल चित्त बन गये। देशना पूरी हुई। दोनों जनोंने दीक्षा की मांग