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व्याख्यान-तीसवाँ ..
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गिरी। नदी नाले छलक गये। प्रातःकाल हुआ। पौरजनों का आना जाना बढ गया। रानी विचारमें पड़ गई। अव क्या करना ? राजा के पास जाकर के कहने लगी कि प्रियतम । वर्षाने तो कमाल कर दिया। अव सुझे तो वंदन करने जाना है तो क्या करना? - प्रिये ! रथमें जाओ। नदी के किनारे जाके कहना कि हे नदी देवी ! सुनि जव से दीक्षित बने हैं तब से जो. उपवासी हों तो मुझे जाने की जगह दे। रानी प्रसन्न चित्त होकर के नई । राजा के कहे अनुसार कहा । रानी को जगह मिल गई।
इसके बाद मुनि महाराज के पास जाके चंदन करके साथ में लाये हुये अपने नास्ता में से महात्मा को भक्ति करके वहोराया ।
रानी को आश्चर्य हुआ कि मुनिको प्रत्यक्ष वहोराया है। तो फिर ये उपवासी कैसे ? और उनको उपवासी कहने से ही नदीने मार्ग दिया है तो इसमें समझना क्या?
वहां ले वापिस आते समय नदी का पूर फिर से आजाने से आना मुश्किल हो गया। तव मुनिने कहा कि
तू नदी के पास जाकर के एला कहना कि "मेरा पति .. ब्रह्मचारी हो तो हे नदी ! मुझे जगह देना"।
जव रानी ने एसा कहा तो सुलभता से अपने स्थान में पहुंच गई। लेकिन उसे आश्चर्य हुआ कि मैं हूं फिर भी मेरा पति ब्रह्मचारी कैसे कहा जा सकता ?
पति ने मुनि उपवासी होने की शंका का समाधान करते हुये कहा कि भाई मुनि उग्र तपस्वी है। फिर भी पारणा के दिन आहार लेने पर भी निराशंसपने और