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व्याख्यान-उनत्तीसवाँ
३७९:.. धर्म की हेलना (उपेक्षा) करने से खुद भी डूबता है। और दूसरों को भी दुचाता है। काम के विना बोलना .. नहीं चाहिये ये गुण है। मौन रहने से कलह नहीं होता है।
और आत्मशक्ति का विकास होता है। बहुत सी लड़ाइयाँ और कंकास में से बचना हो तो मौन रहना सीखो । . ..
किसी की भूल कहना है। तो आँख के सामने कहो लेकिन पीछे से नहीं कहो। . ठाणांग सूत्र में श्रावकों को चार प्रकार के कहा है। . (१) माता समान (२) पिता समान (३) भाई समान (४). शौक (सौत) समान । .. श्रेणिक महाराजा के द्रढ ससकित की प्रशंसा इन्द्र महाराजा ने की । एक दुष्ट देव से यह प्रशंसा सहन नहीं हुई। उसने साधुके वेशमें सरोवर के किनारे मछलियां पकड़ना शुरू किया। श्रेणिक महाराजा फिरने गये थे। वहीं यह द्रश्य देखकर कहते हैं कि साधु वेश में यह ' क्या करते हो? । तव वह देव साधु कहने लगा कि महावीर भगवान के सभी साधु एसे ही हैं।
श्रेणिक महाराजा आगे गये। वहां तो सामने से एकः साध्वीजी सगर्भावस्था के चिन्हवाली होकर के सामने ले आ रहीं थीं। पांचवाँ महीना चल रहा हो एसा संभक्ति हो रहा था । श्रेणिक महाराजा देखके चौंक उठे । अरे! साध्वीजी! साधु देश में यह क्या किया?. वेश को लना दिया ।
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. . ... श्रेणिक महाराजा ने उस साध्वी की गर्भ प्रसूति की तमाम क्रियायें गुप्त कराई। किसी को खबर होगी तो. साधु धर्म की निन्दा होगी। कैसी श्रद्धा है ? : .