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प्रवचनसार-कर्णिका
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घखधखती (धधकती) शिलाके ऊपर अनशन किया। और यात्मा का उद्धार किया। · निकाचित कर्म के उदय से एक वक्त मुनिका चारित्र से पतन हुआ लेकिन जहां कर्मोदय पूरा हुआ वहां माताके. . सहकार से आत्मज्ञान जागृत हुआ। यह है कर्म की दशा?
सहानुभाव । कर्म के उदद्य ले कोई गिर जाय तो उसकी निन्दा नहीं कर के भावद्या का चितवन करना।
सर्व विरतिधर अप्रमत्त होता है नींदमें भी शरीरका करवट बदलना हो तो ओघा से पूंजके फेरना चाहिये। सूतकाल के महापुरुषों में जबर अप्रमत्त भाव था । - शरीर के द्वारा एसी क्रिया नहीं करनी चाहिये जिस ले अशुभ वन्धन हो। - उपधान के आराधकों से चलते चलते वोला नहीं जा सकता है। वे गीत भी नहीं गा सकते । यह हीर प्रश्न में कहा है।
जिस मनुष्य को सोक्ष सुख की प्राप्ति की इच्छा है उसे स्वभाव बदलना पड़ेगा। उपधान की आराधना करते करते स्वभाव बदल जाता है।
शस्त्र लाके बेचने ले कर्म बन्धन होता है। इसे अधिकरणी की क्रिया लगती है।
श्रावक के २१ गुण हैं । उनमें दाक्षिणता भी है।
इस संसार में कदम कदम पर अधिकरणी की क्रिया लगती है। .. .. वीतराग के शासन को प्राप्त हुआ आत्मा अधिक मकान नहीं रखता है । और अगर रखेभी तो किराये से नहीं देता है।.. ...