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व्याख्यान - तीसवाँ
अनंत उपकारी शास्त्रकार परमर्षि फरमाते हैं कि मानव शरीर को उत्तम गिनने का कारण यही है कि मोक्षसाधना इस शरीर से ही हो सकती है । इसलिये |
व्यवहार शुद्ध बनाये विना जीवन शुद्धि नहीं हो सकती है | भूमिका शुद्ध किये विना चित्रामण को (चित्र) सुन्दर नहीं बनाया जा सकता है । एक चित्रकार की भूमि शुद्धि की बात जानने जैसी है :
एक राजा की सभायें एक मनुष्य नजराना ले के राजा के चरण में भेट धरने को आया । वह इसी राज्य: का वतनी था । लेकिन कमाने के लिये परदेश गया था । चहुत बहुत स्थानों में फिरके और कमाई करके ये पीछे देशमें आया था ।
राजाने उसकी खबर पूछी । और कहां कहां फिर आया वह बताने के लिये कहा । इस मनुष्यने भी खुद जहां जहां फिरा होगा वहां का और वहां जो महत्व का देखा था वगैरह उसका वर्णन किया ।
राजाने पूछा कि तू सब जगह फिर आया । और सब देख आया । लेकिन तू ये बता कि दूसरे राज्य में तूने एसा क्या अच्छा देखा जो अपने राज्य में नहीं हो । उसने कहा कि अमुक राज्यमें एसी चित्र सभा देखी
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