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च्याख्यान-उनत्तीसवाँ
३८३ लग्न की बात कही माता पिताने लग्न की बात कही। तव पुनने कहा कि मैं शादी करके दूसरे दिन ही दीक्षा लूंगा । इसके साथ शादी करने वाली आठों कन्यायें यह बात जानकर के भी उसके साथ परणनेको (शादी करनेको) तैयार हो गई । यह कौतुक था ।
चोरी (लग्नमंडप) में लग्नविधि चल रही थी। वहीं पर गुणसागर का आत्मा उच्च श्रेणी में संचरता है।
और यह लग्नमंडप में ही केवलज्ञान को प्राप्त करता हैं । 'एसा उत्तम पति मिलने के बदले में शुभ भावना भाती हुई वे आठों कन्यायें भी केवलज्ञान को प्राप्त करती हैं। . . सुधन के मुखसे पसा मंगलमय वृत्तान्त सुनते सुनते पृथ्वीचन्द्र केवलज्ञान को प्राप्त करते हैं। यह है भावना का जादू । .
भावना से राज्य सभामें केवलज्ञान होते ही आश्चर्य फैल गया । देवलोक से देव दौड़ आये। और साधु वेश
दिया।
भरत महाराजा आरीसा भवन में गये। वहां उनकी अंगुली की मुद्रिका गिर गई। ओहो! जगत अनित्य है। काया अनित्य है। कुंडल अनित्य हैं। __ एसे विचारोंमें हो विचारमें भरत महाराजा ऊंची भावना में चढ गये। और केवलज्ञान प्राप्त किया । केवल ज्ञान होते ही देव आये । देवोंने आके कहा पहले साधुः वेश लो। पीछे वन्दन करेंगे। भरंत महाराजा ने साधुवेश पहना। पीछे देवोंने वंदन किया। इस वेप की भी कितनी महिमा है । . . . ... .
वारह व्रत यह सैनिक हैं और समकित