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व्याख्यान-अट्ठाईसा
. .३७३ उसकी थालीमें वालक की मूत्रधारा आके गिरी। बराबर इसी समय वे ही मुनिवर वहांले पसार हो रहे थे । यह दृश्य देखके भी उनको हँसना आया। नागदत्त का आश्चर्य . चढ़ गया। ... उसके बाद एक समय यह नागदत्त शेठ दुकान पर
बैठे थे वहां रास्तेसे पसार हो रहा कलाई का एक बकरा - शेठ की दुकान पर चढ़ गया। किसी भी तरह से बकरा
नीचे उतरता नहीं था। यहां भी मुनिको उसी समय "वहांसे निकलने का प्रसंग आया और यह दृश्य देखके भी मुनिको हंसना आया। - इस प्रकार तीसरी बार मुनिके हंसने ले नागदत्त का सिर फिर गया। ... उपाश्रय जाकर के मुनिसे हंसने का कारण पूछा। मुनिने जवाब दिया कि आज से सातवें दिन तेरी गृत्यु होनेवाली है और तू तो अभी तक प्रासाद को भव्य (सरस) बनाने का उछंग ले रहा है इसलिये मुझे तेरी इस मोहदशा पर हंसना आया और जिसका तू मूत्रभरा भोजन कर रहा था वह वालक तेरी पत्नीका पूर्वभव का प्रेमी था । तूने ही उसे मार डाला था । जवकि आज तू उसे प्रेमसे हिंडोल रहा था यह देखके मुझे हंसना आया। .. उसके वाद-जिस वकरे को कसाई से रक्षण करने के लिये तूने आश्रय नहीं दिया वह तेरा गये जन्म का वाप था। . बोकड़ा (वकरा) को जातिस्मरण ज्ञान होतेही अपनी दुकानमें अपने पुत्रसे रक्षण पानेको आया था । तूने उसे निकाल दिया और उस कसाईने उसको मार डाला। यह हंसनेका तीसरा कारण था ।