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व्याख्यान-२९ वां
: . शासन नायक श्री महावीर देव फरमाते हैं कि:संयम जीवन प्राप्त करने के लिये जन्मोजन्म की आराधना काम लगती है।
' सम्पत्ति का लोभ गये विना संयम नहीं आता है। तीर्थंकर परमात्मा राज्य स्वीकारते हैं वह भी कर्म खिपाने के लिये ।
. . परमात्मा के संयम के आगे दूसरे का संयम झाँखा लगता है। . .
. तीर्थकर देव द्रव्य और भाव दोनो तरहले उपकारी: है । द्रव्य दया वही कर सकता है कि जिसमें भाव दया आई हो । . . . . . . . . '
जैले विष्टा के कीडाको विष्टा में ही आनन्द आता है इसलिये विष्टा में ही रमता होता है। उसी प्रकार संसारी जीवको संसार के विषय कषाय में ही आनन्द आता है। इसीलिये ये संसार में परिभ्रमण करता रहता है। . . . . . .
. . . . __संसार के जीवों को अशुचि के घर रूप देह पर वहुत प्रेम है । इसीलिये यह देह छूटती नहीं है। और देहकी ममता छूटे विना संसार नहीं छूट सकता है। जब जीव जन्मता है तव शरीर पर एसी चमड़ी होती है. कि देखना भी अच्छा नहीं लगे।