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व्याख्यान-छब्बीसवाँ
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वहां पासके गड्ढे में एक वावा संडास जाते जाते एक-दो-तीन-चार-पांच-छ:-सात-आठ-नव-इस प्रकार तीन दफे गिन्नी गिनता था।
शेठने यह सव देखा । वावाने नवकी नव गिन्नियां गिनके अपनी जटामें वरावर बाँध ली। .
वावाको ये डर था कि इस समय के सिवाय अगर किसी दूसरे समयमें गिनी जाये तो कोई देख ले। इसलिये जव सुवह संडास जाय तव उसकी चारों ओर देख ले. तपास कर ले पीछे जटामें से गिन्नियां काढ के, गिनके, सम्हालके पीछे जटामें रख देता था।
वावा तो था अलखनिरंजन । लंगोटी के सिवाय शरीर पर कुछ भी कपड़ा पहनता नहीं था। इसलिये गिन्नी दूसरी किस जगह रखे ? अपनी जटामें छिपाके रखता था। __ इस तरफ वावाने नौ मिन्नियां गिनके पीछे जटामें पेक कह लीं यह सव यह शेठ देख गया ।
वाबाजी खडे हुये कि चुपके चुपके हुका रास्ता से होकर गाँवके दरवाजे पहले से ही पहुंच गया। और कुछ शोधता हो इस तरह फांफला फांफला (घबराई नजरसे) चारों तरफ देखने लगा । इस वातकी उस चावाको कुछ भी खवर नहीं थी इसलिये सीधे वावाजी चले जा रहे थे उनकी तरफ शेठ दौड़ा । और सीधे बावाजी के चरणमें ढल पडा ।
वावाजी तो आश्चर्य करने लगे। इतने में तो शेठने खडे हो के कहना शुरू किया कि. हे महाराज ! आज मेरा स्वप्न फलाः । वावाजीने. कहा बच्चा.किसका स्वप्न