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याख्यान-अट्टाईसवाँ
जीव के रक्षक, समस्त बोधवंत के भाई मोक्षा भिलाषी. के सार्थवाह, पड़द्रव्य, तथा नव तत्व का स्वरूप कहने में विचक्षण अष्टापद पर्वत ऊपर स्थापना किये हैं विम्व जिनके, अष्टकर्म के नाश करने वाले एसे चौबीस तीर्थंकर जयवन्ता वर्ती। जिनका शासन किसी से हणाय नहीं एसा है। . . . . - "कम्मभूमिहिक कम्मभूमिहिं पढम संधयणि, उक्को। . - सय सत्तरिसय जिणवराण विहरंत लग्मई । " नवकोडिहिं केवलिण, कोडिसहस्स नव साहु गम्मई। संपई जिपवर वीस मुणि, विहुं कोडिहिं वरनाण ।
समणह कोडि सहस्स हुअ थुणिजई निच्च विहाणि॥ - असि, मसि और कृषि जहां वर्तत है। एले कर्म भूमि के क्षेत्रों के विषे प्रथम संधयण वाला उत्कृष्ट पने से एक सौ और सत्तर तीर्थकर विचरते पाये जाते हैं। केवल झानी नवक्रोड, और नव हजार क्रोड साधू होते हैं । एसा सिद्धान्त से जातते हैं। - वर्तमान में सीमंधर स्वामी प्रमुख तीर्थकर, दो करोड़ केवल ज्ञानी तथा दो हजार क्रोड साधू हैं । उनकी निरन्तर प्रभात में स्तवना करते हैं ।
“जय उ सामिय जय उ सामिय रिसह सत्तंजि, उजिंति पहु नेमि गिण, जय उ वीर सव्व उरिमंडण, भरू अच्छहिं मुणि सव्नय, मुहरिपास, दुह दुरि अखंडण, अवर विदेहि तित्थयरा, चिहुँ दिसिविदिसि जिंकेवि, ती आणागंय, संपइअ, वंदू जिण सव्वेवि । उ॥ - . जयवंता वर्ती श्री शत्रंजय ऊपर श्री ऋषभदेव भगवन्त, श्री गिरनारजी पर्वत ऊपर प्रभु नेमिनाथ । और . २४ .. .
जानते हैं। तीर्थकर, दा निर