________________
Mantract
व्याख्यान-अहाईसवाँ
अनन्त उपकारी शास्त्रकार परमर्षि फरमाते हैं कि मानवजन्म दश दृष्टान्तों से दुर्लभ है। दुर्लभ एसे मानव जीवन को प्राप्त करके आराधना में तदाकार बनने के लिये प्रयत्नशील वनना चाहिये। संसार की प्रत्येक क्रिया में सावधान बनना चाहिये। क्रिया करना और पाप न बंधे उसका नाम सावधान कहलाता है। ....
दीक्षा लिये विना एक भी तीर्थंकर देव केवलज्ञान को प्राप्त नहीं हुये। और प्राप्त करेंगे भी नहीं।
तीर्थकर परमात्मा को दीक्षा के लिये एक वर्ष जितना समय वाकी हो तब लौकान्तिक देव आके विनती करते हैं कि हे भगवन्त ! तीर्थप्रवर्ताओ ! जगत का कल्याण करो।
इस विनती को सुनकर के तीर्थकर उपयोग के द्वारा दीक्षा काल को जानते हैं। और वार्षिक दान की शुरुआत करते हैं। .. वार्षिक दान की लक्ष्मी जिसके हाथ में जाती है। उसको लक्ष्मी की ममता उतर जाती है। . . . ... दानांतराय कर्म के उदय वाले मनुष्य पैसा होने पर भी दान नहीं दे सकते। लक्ष्मी की ममता वाला जीव मरके लक्ष्मी के ऊपर सांप हो के फिरता है।
दान देने से संसार सागर तिरा जाता है। दान इस तरह से दो कि लेने वाले को मांगने की जरुरत न पड़े। इसका नाम दान। . . .