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प्रवचनसार कणिका
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. उसकी पूर्व भव की पत्नी और इस स्त्री सभा में . बैठी सती मदनरेखा ने अपने स्वामी को आराधना कराके देवलोक में भेजा था। वहां से देव उसे नमस्कार कर रहा है इसलिये शान्त बन जाओ।
सभा में शान्ति फेल गई। मदनरेखा को उपाड के.. लाने वाला विद्याधर विलख पडा (घबरा गया) आशा.. निराशा बन गई।
इस तरफ नवजात शिशु जंगल में रो रहा था। राजा शिकार के लिये निकला । वह फिरते फिरते वहां आया । राजा को पुत्र नहीं होने से पुत्र को ले लिया ।
राजभवन में जाके पुत्र रानी को सोपा । हंसमुख तेजस्वी पुत्र को देखके रानी आनन्दित बन गई।
राजाने जाहिर किया कि रानी ने पुत्र को जन्म. दिया है । पुत्र जन्म महोत्सव चालू हो गया ।
यहां सदनरेखा वैराग्य बालित बन गई । दीक्षा ले' ली। आत्म कल्याण में मस्त रीत से पकतान वन गई ।
देव देवलोक में चला गया। विद्याधर स्वस्थ चित्त से स्व स्थान में गया ।
कामके दुष्टपने को धिक्कार हो। बड़े बड़े महात्मा भी कामसे अंध बन गये के द्रष्टान्त शास्त्रों में मौजूद हैं। - जिस विद्याधर के अनेक रूपयौवना पत्नियां थीं फिर भी मदनरेखा पर रागी बन गया । हाथमें कुछ भी नहीं बाया फिर भी मन और वचन से कितने कर्स वांधे ?
काम अग्नि जैसा है। वह कभी भी शान्त नहीं होता है।