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प्रवचनसार कर्णिका
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जायेंगे । पसा विचार करके उसने शेठके द्वारा दिए गए पांच दानों को उसने फेंक दिया। उसको तो एसा ही लगा होगा कि सलराजी पागल हो गए जिससे डांगर के दाना दिए । किन्तु ससराजी की दीर्घद्रष्टि का डहापणका ख्याल उस जज्बुद्धिवाली को कहाँ से आवे । .
दूलरी वहूमें बुद्धि की जड़ता इतनी अधिक नहीं थी लेकिन उसकी बुद्धिमें भी थोड़ी जड़ता तो थी ही इसलिये उसने विचार किया कि अपने घनमें डांगर (धान) के कोठार तो भरे ही हैं इसलिये ससराजी जव मागेंगे तव क्षणभर में दाना कोठारमें से काढके दे दिए जायेंगे। . लेकिन फिर उसको एसा भी लगा कि पिताजीने ये दाना दिए हैं तो फेंक देने लायक तो नहीं हैं । इसमें वडील (वड़ों) का अपमान होता है एसा विचार करके दूसरी बहू शेठके द्वारा दिए गए दाना खा गई।
तीसरी बहू इन दोनों जैसी नहीं थी। इसलिए उसने विचार लिया कि ससराजी डाह्य (वुद्धिशाली) हैं ! किसी भी कारण के विना इस डांगर के पांच दाना सुरक्षित रखने के लिए नहीं दे । खैर। कारण तो जो होगा सो होगा। लेकिन ससराजी की आज्ञानुसार ये पांचों दाना सुरक्षित रख देना चाहिए । एसाविचार करके उसने वे पांचों दाना एक चिदरडी ( कपड़ा) में वांध के गहनों के डव्वे में रख दिये।
चौथी बहू विलक्षण ही थी। उसने विचार किया कि इस प्रकार पांचदाना देने में ससराजी का कुछ वड़ा आशय होना चाहिए । नहीं तो बुद्धिवन्त एसे ससराजी बांगर के पांच दाना देने की विधि स्नेही जनों की हाज़री