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घ्याख्यान-सत्ताईसवाँ
३६१ :". । राजा के पास इसने न्याय मांगा। राजाने न्याय किया । राजसभा में एक तरफ माता और दूसरी तरफ .. वालक के पिता साधु खड़े हुए । बीचमें इस वालक को खड़ा रक्खा । माताने खिलौना दिखाये और गुरुने ओघा और मुहपत्ती दिखाई। बालक खिलौनों की तरफ नहीं जाके ओघा लेके नाचने लगा। सभामें आश्चर्य फैल गया। माता हार गई और पीछे से उसने भी दीक्षा ले ली।
यह व्रजस्वामी महाज्ञानी तथा प्रतिभाशाली तरीके.. खूव प्रसिद्ध हुए । शासन्नोति के अनेक काम उनके हाथ से हुए। ... एक समय माहिप्पुरी नगरीमें ब्रजस्वामी चातुर्मास में थे। वहाँका राजा बौद्धधर्मी था। राजाने फरमान निकाला कि किसीको भी जैन मन्दिरमें फुल नहीं चढ़ाना । ... पर्युषण पर्व के दिन नजदीक आए । वहाँ का संघ इकट्ठा होके आचार्य श्री ब्रजस्वामी महाराजके पास गया, खिन्नवदन वाले संघको देखके आचार्य महाराज पूछने लगे कि पुण्यशाली, निराश क्यों दिखाते हैं ? .. ... संघने कहा कि हे प्रभो, आपके जैसे गुरु महाराज हों. और हम प्रभुकी पुष्पसे पूजा न कर सकें यह कितना दुःखका विषय है ?..यहाँ के राजा का हुक्म है कि जैन मन्दिरमें पुष्प नहीं देना । . . . . . . .: : : संघकी लागणी और प्रभुभक्ति देखके आचार्य महाराज... बोले-पुण्यशालियो, चिन्ता न करो। पुष्प मिल जायेंगे ! आचार्य महाराज की मधुर वाणी सुनके संघ आनन्द में या गया । . . . . . ... ... ... ... . . :: अव आचार्य महाराज 'लविधाका उपयोग करके