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व्याख्यान-सत्ताईसवाँ :: इस बावत का निर्णय करने के लिये शेठने चारों 'पुत्रवधूओं को परीक्षा करनेका निर्णय किया । ......
. शेठ इतने डाह्या (बुद्धिशाली) थे कि जो भी काम करें वह उहापण (बुद्धि) से करते थे। जिससे वह जो
काम करें उसमें सभी संमत रहें और उसमें किसीको भी . "अनजानपने से भी विरोध करने का मौका नहीं मिले।
- इसलिये उन शेठजीने चारों पुत्रवधूओं की परीक्षा करके चारों को जो योग्य हो वह सोंपने की विधि सभी कुटुम्वीजनों के समक्ष करना एसा निर्णय किया ।
एसा निर्णय करके शेठने एक बार भोजन समारंभ की योजना की । उसमें जैसे अपने कुटुम्बके मनुष्यों को आमन्त्रण दिया उसी तरह चारों पुत्रवधूओं के कुटुम्बीजनों को भी आमन्त्रित किया।.' ... सबको अच्छी तरहसे जिमाने के बाद शेठने योग्य स्थान पर सबको, बिठाया और अपनी चारों पुत्रवधूओं
को बुलाया। .....: पुत्रवधूयें आ गई। इसके वाद ..शेठजीने हरेक को
डांगर (धान) के पांच पांच दानें दिए और कहा कि यह दाना जब मैं पीछे माँगू तव तुम मुझे शीघ्रही दे देना। फिर शेठने सबको विदा किया ।:: :: .. . .....
शेठने एसा क्यों किया ? इसका मर्म किसीको समझ में नहीं आया ।::. ..... ...... : - सर्वके चले चानेके बाद बड़ी वहूने विचार किया कि मेरे घर में दाना की क्या खोट है? जब ससराजी मांगेंगे तव कोठारमें से निकाल के उनको पांच दाना दे दिए