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प्रवचनसार कणिका
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. जैन शासनके प्रत्येक महोत्सव में समकित प्राप्ति, धर्मप्राप्ति आदिके निमित्त रचने में आये हैं।
हम्हें धर्म अच्छा लगता है एसा बोलने वाले प्रायः पोकल बातें (गप) मारनेवाले होते हैं। घसी पोशल वातों में न आ जायो।
मदनरेखा राजाकी वातवें आ गई होती तो धर्म न कर सकी होती और सतीत्व भी चला जाता लेकिन जैन शासनको प्राप्त हुई सदनरेखा किसी की बातमें आ जाय एसी नहीं थी । राजाके एक शब्दले वह सब समझ गई।
कैले कैसे प्रयत्नों के द्वारा उसने जीवन का रक्षण किया वह विचारो। विचारोगे तो समझमें आ जायगा कि एसी सतियों का नामस्मरण करना भी जीवन का अनुपम ल्हाला (लाभ) है।
इसीलिये प्रतिदिन प्रातःकाल प्रभात समय प्रतिक्रमण की नियामें भरहेसर की सज्झाय में वोलते समय श्रीसंघ लोलह सतियों को याद करता है।
यहां मदन रेखा का जीवन वृत्तान्अ जरा विचारते है। :
सुदर्शनपुर नाम के नगर में उस समय मगिरथ नामका राजा राज्य करता था । इस राजा के युगवाहु नाम का छोटा भाई था । राजा ने अपने छोटे भाई को युवराज पद पर स्थापित किया था । __ युवराज युगवाहु के मदन रेखा नाम की धर्मपत्नि थी । मदनरेखा खुब ही रूपवान थी। जितना वो रूपरवती थी उतनी ही वह शीलवती भी थी। और जितनी वो शिलवती थी उतनी ही वो सच्चे अर्थ में धर्मपत्नी भी थी।