________________
व्याख्यान-छब्बीसवाँ
संसार के रसिया को मोक्ष का ज्ञान नहीं हो सकता है। .... .
संसार का सुख दुख रूप लगे विना मौत नहीं 'मिल सकता है। : - भूख लगती है इसलिये खाना पड़ता है। प्यास लगती है इसलिये पानी पीना पड़ता है। इसी प्रकार भोग की इच्छा से भोग भोगना पड़ते हैं। यह सब कर्म की लीला है । एसा विचार करते हो जाओ। .... . संसार में मजा करते करते समकित प्राप्त कर लेगे यह वात में कोई मजा नहीं है। .. ... अपन चेतन होने पर भी जड़ में फसे हुए है। पूरा
संसार पाप में डूबा हुआ है। . . . . . . . . ... ... . - भोग की इच्छा वाले के पाससे जव भोग दूर होते हैं तव उसे दुख लगता है। उसी तरह जव धर्मी से धर्म दूर होता है तब उसे दुख होता है। . . . ... दुखी मनुष्य साधु के पास आकर दुख का रोना रोवे तो साधु कहे कि हे महानुभाव । पाप का उदय है। इसलिए दुखी हुए हो । अव धर्म की आराधना में मस्त वनो तो दुख चला जायगा। . ... : . . विषय रस, कवाय रस, मोहरस, संसार रस और स्नेह रस इन सव रसों में लीन बना आत्मा सुखी होने पर भी दुखी ही है। दुखी की दया द्रव्य से की जाती है और सुखी. की दया भाव से की जाती है। .. माता पिता की भक्ति करने से धर्म प्राप्त होता है। ये भक्ति.निस्वार्थ से भरी होनी चाहिये । '. समाज सुधार के लिए निकले हुए सुधारकों को
२२ .