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प्रवचनसार
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ने भेजें। शंखराजा के कानमें यह शब्द पड़े। व्हार से इसे शंका उत्पन्न हो गई। शंकामें मनुष्य के भ्रष्ट हो जाती है। विवेकबुद्धि मन्द पड़ जाती है है कि वहम का कोई औषध नहीं है। क्रोध-क्रोध सेवकों को आज्ञा करदी कि रानीको मधरात में ले जाके दोनों बेरखा सहित इलके कांडा (हाथ डालो और कांडा यहां हाजिर करो! लेवकोंने अ पालन किया।
कांडा कट जाने से भयानक जंगल, निर्जन पेटमें गर्भ, प्रसूतिका लमय, इन सब संजोगोंमें व हैयाफाट रोने लगी, इतने में तो नदी की सुकोमल पुत्रका प्रसव हुआ लेकिन हाथोंके बिना पुत्रको दै प्रसूतिकार्य कौन करे? इसने सनमें दृढता रखके है पूर्ण भावनाले शासनदेवी की प्रार्थना की। सच्चे की गई प्रार्थना फले विना नहीं रह सकती है तापस इसकी मददमें आया। रानीको आश्रममें ले इतना ही नहीं बल्कि पूरा वातावरण बदल गया नदी पानीले भरके वरने लगी। हाथके कांडा फिर गये । दुःखकी वर्षा लुखकी वर्षामें बदल गई। .
उस तरफ सेवकोंने रानीके काटे हुए कांडा सहित राजाके सन्मुख हाजिर किये । बेरखा के अंकित किया राजाने जयसेन का नाम पड़ा। जय कलावती का भाई होता है और वहनको भाई तो व्हाला (प्रिय) होता है।
आवेशमें आके खद किये ढपक्रत्य पर खव पथ
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