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व्याख्यान - पच्चीसवाँ
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मन्त्रीने रोका | मन्त्रीने कलावती की तपास कराके पता प्राप्त किया और आदरपूर्वक ले आये । वाजले गाजते बहुत ही सन्मान पूर्वक रानीको नगरप्रवेश कराया ।
एक दिन कोई महाज्ञानी मुनिराज उस नगरसें पधारे, राजाने उनके पास पूर्व वृत्तान्त का निवेदन किया । ज्ञानी - सुनिने उनका पूर्व भव सुनाया ।
मुनिराजने कहा कि हे राजा ! तू पूर्व भवमें पोपट ( तोता ) था । कलावती राजकुँवरी थी । खुदको मनपसंद तोता न उड़ जाय इसलिये कुंबरीने उसकी दोनों पाखें (पंख) कटा डाले | वह सब विगत विस्तार से समझाई |
इस भवसें तुम्हारा दोनोंका संवन्ध पति-पत्नी के रूपमें हुआ । किन्तु पूर्व भवके कर्मों के कारण कलावती के कांडा काटे गए। यह पूरा वृत्तान्त जानके राजा-रानी प्रतिबोध को प्राप्त हुए । संसार छोड़के आत्मकल्याण के पंथ में संचरे ।
नजर से देखा भी खोटा हो सकता है तो सुनी हुई बात पर एकान्त से विश्वास कैसे रखा जाय । इसलिये चोलते हुए खूब विचार करना ।
एक पुनीम शेठके चौपड़ा (खाता) खोटे लिखें तो ये भी पापका भागीदार होता है ।
'कलावती अपने सिर पर आए कटके समय नवकार "मिननेमें तदाकार थी । नवकार मंत्र पर वह खूब श्रद्धालु थी इसीलिये उसे सहायता करने के लिये देव दौड़ आए । आजकी मान्यता ऐसी है कि जिसके पास पैसा अधिक वह सुखी अधिक 1 भूतकाल में ऐसा नहीं था ।
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