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व्याख्यान - पच्चीसवाँ
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अभी तक जितने मोक्ष गये हैं वे सब मानवजन्म को प्राप्त करके ही गए हैं और भविष्य में भी मोक्षमें जाने वाले मानव जन्मको पाकर के ही जायेंगे ।
जिसने तुम्हारा विगाड़ा हो वह तुम्हारे सामने आवे तव तुम्हें क्या विचार आयेगा ?
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सालेको मार डालूं ऐसा ही विचार आयेगा कि नहीं ? पण्डित मनुष्य ऐसा नहीं बोलेगा कि मैं पण्डित हूँ । बड़ा मनुष्य पता नहीं कहेगा कि मैं बड़ा मनुष्य हूं और जो कहे तो समझना कि इसमें कुछ भी कंस तत्त्व नहीं है । धर्माराधना में इतनी शक्ति है कि जरूरत नहीं होती है । बिना मांगे भी रहा है । आराधना करने से जितना होगा को मिलने वाला ही है । और अंत
जायगा ।
पुन्य मांगने की पुन्य बंधता जा
इतना सुख अपन शिवपुर में ले
में
आराधक आत्माओं को संकट के समय संकट को टूर करने के लिये देव हाजिर ही रहते थे। क्योकि आराधकों की पुन्य प्रकृति तेज थीं ।
नियाणा वांधने की शास्त्र में मनाई है । क्योकि नियाणा बांधने से एक वार तो सुख मिलता है लेकिन फिर दुर्गति में जाना पडता है ।
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मांग के पुन्य करना ये अज्ञान दशा की निशानी है । आराधना करने से मांगे विना भी ऊँचे से ऊँची पुन्य प्रकृति बंधती है ।
तीर्थंकर परमात्मा की तीर्थंकर भवमें होने वाली
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