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प्रवचनसार कर्णिका . झरोखे बैठे नट कन्या के पिताके द्वारा वेश परिवर्तन द्वारा वारवार आते हुए मुनिराज का यह कार्य देख लिया। · उलने पुत्रियों से कहा कि यह साधु अभिनय विद्या में कुशल लगता है। इसे खुशकरके तुम्हारा स्वामी 'वना लेने लायक है। - रूप सौन्दर्य में मुग्ध बने अपाढ भूति रोज यहां आने लगे । सुन्दरियों उन्हे वशकर लिया।
आखिर मुनि ने दीक्षा छोड़कर गुरू के पास लग्न करने की आशा मांगी। गुरू को बहुत आघात लगा। फिर भी जाते जाते एक शर्त की किन्तु मांस मदिरा को हाथ नहीं लगाना । और उनके उपयोग करने वाले का संग नहीं करना ।
इतनी भी शुरू की आज्ञा को उसने स्वीकार कर लिया । और इन कन्याओं को भी मांस मदिरा त्याग कराके उनके साथ परन्या (शादी करली)। - नृत्य नाटक संगीत वगैरह कलाओं में रात दिन सरत रहने लगे। एक दिन परदेस से आये नाटककार ने राजा के पास चेलेन्ज (पडकार) फेका कि मुझे कोई हरा सके एसा कोई नाटककार हो तो मेरे सामने हाजिर हो। . राजा ने आषढभूति को बुलाया। खेल की तैयारी हुई। अपना स्वामी तो नाटक पूरा करके सुवह आयेगा एसा समझकर दोनों स्त्रीओं ने खूब शराब पीली । मांस भक्षण किया। क्योकि अपाढ भूति की शरत के अनुसार उन्होने बहुत दिनों से इस चीज का उपयोग नहीं किया था।