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व्याख्यान-छठवीसवां
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अनंत उपकारी तारक श्री जिनेश्वर देवों ने धर्म का जिस तरह से उपदेश किया है, उस तरह से जीवन में उतरने वाले वने तो आत्म कल्याण दूर नहीं है।
_प्रशस्त कपाय को करने का आदेश है। विष्णुकुमार ने नमुची को दवा के प्रशस्त कपाय किया था ।
उत्सर्ग और अपवाद को जानने वाला हो वह गीतार्थ कहलाता है। संसार का रस जवतक कम नहीं होगा तबतक शासन का रस नहीं आता है। ज्यों ज्यों शासन रस बढे त्यों त्यों समकित आने लगे। - तुम्हें तुम्हारे परिवार पर प्रेम है। और परिवार को तुम्हारे ऊपर प्रेम है। यह संसार का रस है। इससे कर्म वन्धते हैं।
हाथी के पीछे कुत्ते वहुत भोंकते रहते हैं फिर भी हाथी तो मलकाता मलकाता चला ही जाता है । घवराता नहीं है। इसी तरह महापुरुषों की पीठ पीछे निन्दक निन्दा करने वाले ही है । परन्तु उस निन्दा से घवराये विना अपने शुभ कार्यों में सज्जन तो अडिग ही रहने वाले हैं।
महापुरुष सुन्दर मार्ग को केवल बातों से नहीं बताते हुए आचरण से बताते हैं । सुन्दर आचरणमय जीवन वनाओ इससे दुनिया में महापुरूष तरीके प्रख्याति हो जायगी।