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व्याख्यान-वाईसवाँ
२७१ कर्म दंडा (डंडा) मारता है इसलिये सलार दंडक कह लाता है। . .: . जगत के जीवों को जितना भय मरण का है उतना संसार का भय नहीं है। .. भगवान महावीरने देशना में कहा है कि जो मनुष्य लब्धि (शक्ति) ले अष्टापद तीर्थ की यात्रा करता है । वह नियमा इस भवमें ही मोक्षमें जाता है। यह बात सुनके गौतम महाराजा अष्टापद तीर्थकी यात्रा को गये
थे। पीछे फिरते थे तब पन्द्रहसौ तायलों को दिक्षा . दी थी। . .
.. पन्द्रहसौ तापस अष्टापद ऊपर नहीं चढ सकने से उपवास पर बैठे थे। पन्द्रसौ को पारणा कराने के लिये . एक पात्रामें थोडीसी खीर बहोर के ले आये । सब विचार करने लगे कि इतनी खीरसे क्या होगा? __गौतम स्वामीने पात्रामें अपना अंगूठा रखा । खीर परोसना शुरू किया। खीर ज्यों ज्यों पिरसाती गई त्यों त्यों वढती गई। इस तरह से पन्द्रहसौ को पारणा करा दिया। तेथोश्री में क्षीराश्रवकी लब्धि होनेसे क्षीर घटी ही नहीं।.
. . . ... ..। .पांचसौ को तो पारणा कराते ही केवलज्ञान हो गया। पांचसौ को प्रभुका समव शरण देखते ही केवलज्ञान हो गया। और पांचसौ को वहां पहुंचते ही केवलज्ञान हो गया । इस तरह सभी पन्द्रहसौ.तापस कवली वन गये। - " पर्षदा में वे केवली की सभा में बैठने गये। तव गौतम स्वामी बोले कि अपनसे नहीं बैठाय । तव भगवान