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प्रवचनसार कर्णिका मनुष्यलोक में सुख गंधाती गटरके समान है इसलिये : महानुभाव ! संसारी सुखोंका विरागी बनना चाहिए। ..
साधु-संत भी रागीके संगसे रागमें लिपट जाते हैं। इसीलिये शास्त्रों में साधुओं को रागी के अति संग का निषेध बताया है।
जहाँ राग पुष्टिके साधन हैं वहाँ साधु रह भी नहीं सकते हैं । जो ऐले स्थल में निवास करने में आवे तो अतिचार लगे। निरतिचार जीवन जियो यही शुभेच्छा ।