________________
व्याख्यान-तेईसवाँ:
२९७
-
-
लोकोंके समूह के समूह राजभवन में खबर काढने के लिए आये । चौरे और चौटे (हरजगह) एकही बात हो .. रही थी कि राजकुमार नीदमें गिर जानेसे मर गए । - शेठकी सलाह से राजाकी आवरू बच गई। राजाने
खुश होके भरे दरवार में शेठको नव लाख सोना मोहरें भेंट दी और पघड़ी बांधी। - शेठ घर आये तव शेठानी कहने लगी कि वाहरे वाह मेरे प्रिय स्वामिनाथ! तुमने तो सचमुच में "आभको थींगडा मारा।" . जितने आत्मा मोक्षमें जाते हैं वे भाव संयमी वनके .. जाते हैं। साधु भी अगर रागादि से पीड़ित हों तो दुःखी हैं और भाविमें भी दुःखी होते हैं।
आर्तध्यान में जो मरता है वह तिर्यच गतिमें जाता है। रौद्रध्यान में जो मरे वह नरक गतिमें जाता है। 'हिंसा नरकसें ले जाती है । वेश्यागमन नरक में ले जाता है। महा अनीति-अन्याय नरकमें ले जाता है। रत्नप्रभा नामकी नरकपृथ्वी एक लाख अस्सी हजार योजन की है।
समकिती देव मानवलोक में आनेके लिए झंखना करते हैं।
अठारह पाप स्थानकों को काढने के लिये धर्म की आराधना करनी है।
कामको लालसा को धिक्कार हो? वैक्रिय शरीरधारी देव काममें डूवें रहते हैं । कामवासना वड़े मनुष्योंको भी अंध वनाती है ! कामवासना लहसुन (लसण) जैसी है और शुभवासना कस्तूरी जैसी है । कस्तूरी भी लसुन के संगसे दुर्वासित बनती हैं।