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प्रवचनसार कर्णिका । मनमें विचार करने लगी कि आजका दिन तो मेरे यहां सोनेका सूर्य उगा हैं। आज मेरे यहां तपस्वी मुनिराज के पुनित पगला हुए । प्राविका खूब ऊंचे मावसे मोदक वहोराती है और तपस्वी सुनिकी हो रही इस भक्तिको देखके देवोंने लोनैया (लोनामुहर) का बरसाद बरसाया।
श्रावक के घरके सामने एक वेश्याःका घर है। वह इस प्रकार से होनेवाले सोनामुहर का वरसाद देख गयीं। इसलिये वह मन में तय करती है कि एसे साधुको लाडू वहोराने ले सोनेका वरसाद होता है तो लाओने में भी लाडू बहोराऊ एसा विचार के लाडू बनाने की तैयारी करने लगी। ___ इस तरफ श्रावक के घरमें से साधु महाराज भरे पात्रले बाहर निकले तब वहांसे एक भांड पसार हो रहा था, वह तीन चार दिनका सूखा था । उसके मनमें एसा हुआ कि पले साधु महाराज के कपड़ा पहनने से जो खाना मिलता हो तो क्या खोटा ? लाओने मैं भी एले ही वेश धारण कर लूं। . पसा विचार करके वह भांड भी साधु वेश धारण करके उस रास्ते से निकला । इस तरफ वह वेश्या भी किसी साधु महाराज की राह देखती हुई दरवाजे में खड़ी थी।
उस वेशधारी (ढोंगी) सांडको जाता हुआ देखके कहने लगी कि पधारो! महाराज पधारो! मांड को तो इतना ही चाहिये था । वह तो धुसा वेश्या के घरमें और पात्रा खोल के रक्खा नीचे।
वेश्या तो पात्रा में लाडू रखती जाती थी और ऊपर