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व्याख्यान - चौबीसवाँ
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देखती जाती थी | वह सांड तो बात समझ गया । एक एक मोदक रखते रखते देश्याने पात्रा भर दिया । लेकिन सोनैया (सोनामुहर) वरसाद नहीं हुआ । इस लिये वेश्या का मुँख ढीला हो गया ।
यह देखके वह भांड बोला :
ते साधु ते श्राविका तूं वेश्या मैं भांड | तारा मारा पापथी पथ्थर पडशे रांड ॥
तू ऊँचे देखना नहीं देव ! तुझे अथवा मुझे किसीको भी प्रसन्न होने वाले नहीं हैं । लेकिन जो रूठेंगे तो सोनेया के बदले पथ्थर (पत्थर) बरसावेंगे और अपन दोनों मर जायेंगे ।
कर्म को गति गहन है । कर्म पसे एसे नाच नचाता है कि प्रत्यक्ष देखने पर भी तुम्हें वैराग्य नहीं आता है । ये आश्चर्य है ।
कर्म की विचित्रता को समझाने वाली अठारह नातरा की कथनी विचारने जैसी है ।
मथुरा नगरी में वसती कुवेरसेना नाम की गणिका मशहूर थी । एक वार किसी पुरुष से उसे गर्भ रहा । : गणिकाओं को वालकों की जंजाल कैसे अच्छी लगे ? फिर भी उसे गर्भपात कराने का मन नहीं हुआ ।
योग्य समय में पुत्र पुत्री की जोडा जन्मा |
गणिका का धंधा होने के कारण इच्छा नहीं होने पर भी बालकों का त्याग करना पड़ा ।
एक पेटी ( सन्दूक) में दोंनो को सुला के वह पेटी जमुना नदी में पंधरा दी। दोनो वालकों के हाथकी अंगुली