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व्याख्यान-चौयीसवाँ पति तरीके भोगा । पश्चात्ताप की ज्वालाने संसारी मोहको जला दिया । अंतरमें वैराग्यकी चिनगारी प्रगटी। और कुवेरदत्ताने संसार छोडके परम पुनीत प्रव्रज्या अंगीकार को । साध्वी वी कुबेरदत्ता ग्रामानुग्राम विचरने लगी। . इस तरफ कुवेरदत्त को भी सच्ची हकीकत का ख्याल प्राप्त हो गया । एक वक्त उसे मथुरा नगरी तरफ व्यापारार्थ जाने का प्रसंग आया । युवानी का सहज याकर्षण उसे कुबेर सेना के पास ले आया । कुबेर सेनाको भी ये ख्याल कहां से हो किये मेरा पुत्र है। . पहले बहनको पत्नी गिनी । अब खुद जनेताको भी भोगी। अपने ही पुत्रके संयोगसे कुबेरसेना को गर्भ रहा । यथा समय वालकको जन्म दिया । . साध्वी वनी कुबेरदत्ता को संयम पालनकी अडिगता : से अवधिज्ञान उत्पन्न हो गया । अवधिज्ञानी वनी उन साध्वीजी महाराजने अवधिज्ञान के उपयोग ले अपने भाई और जनेता का प्रकरण देखा । हृदयमें अपार खेद अनुभवा । माता और भाईको सत् पंथमें लानेको गुरुकी आज्ञा लेकर मथुरा तरफ विहार किया । सथुरा पहुंचके माता गणिका के आवास में ही मुकाम किया। '.. एक दिन रोते वालक को शान्त करने के लिये ये . गुरुणी जी महाराज मधुर कंठसे हालरडां (पालने का गीतं) गाने लगी।
.. इस हालडामें उनने उस बालक को उद्देश करके एकके बाद एक अपने और वालकके वीचके अठारह संबंध गा बताये । पास में बैठी कुबेरसेना पसा सम्वन्धों के साथ हालरंडा सुनके स्तब्ध वन गई। आखिरमें अवधिज्ञानी