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व्याख्यान-चौवीसवां
अनन्त उपकारी शास्त्रकार परमर्षि फरमाते हैं कि मानवजीवन एक सुसाफर खाना है। . सुसाफर खाने में जैसे अनेक सुसाफर इकठे मिलते हैं। और अन्तमें विखरते रहते हैं इसी तरहसे मानवजीवन में विविध सगे-संबन्धी रूपमें सव इकडे मिलते हैं, परन्तु . यायुष्य पूर्ण होते ही सब विखर जाते हैं।
बाद वे उसी स्वरूप में इकट्ठे होनेवाले नहीं हैं तो मिले हुए मानव जीवन को सफल बनाने के लिये प्रयत्न करो।
संतोषी मनुष्य फटे कपड़ों में शायद रोडके ऊपर लो रहेगा किन्तु दुर्गति में नहीं जा सकता है. किन्तु सुखी मनुष्य वंगला आदि में राग करेगा तो दुर्गतिमें जाने. वाला ही है।
गुरुमहाराज शिखामण दें (सीख दें) तव सुनते सुनते गुस्सा आ जाय फिर भी पीछे से माफी मांगना चाहिए ऐसी विधि है तो फिर गुरुमहाराज के बारे में कुछ विपरीत चोले हो तो माफी मागे विना तो नहीं चलेगा। - वीतराग. परमात्मा अपने ऊपर क्या उपसर्ग आने वाला है ? इसके अनुसंधान में ज्ञानका उपयोग नहीं: रखते । . . . . . .