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- व्याख्यान-तेईसवाँ
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.. दोपहर का समय था। वैशाख का प्रखर तडका और .. एक महीनाके मुनि उपवासी। चमड़ा सुखाता गया त्यों त्यों.
मुनिके मस्तक की नसें टूटने लगीं । . फिर आँखके डोला (आँख) बाहर निकल आयें।
और फिर पूरा शरीर हट गया। फिर भी मुनिको सुनार के प्रति जरा भी ढेप नहीं होता है। अपने ही किसी कर्म का दोष जानके समता रस में डूब गये । काया ढल गई और प्राण पंखी मुक्ति के आकाश में उड गया यानी. (मर गये)।
धन्य है पसे महा मुनि मेतारज को। ... अन्त में एक भारावालोने लकड़ियों की भारी सुनार के घर में डाली। भारी की आवाज से पेड़ पर बैठा हुआ कौंच पक्षी घबरा गया और चिरक गया। जवला उसकी विष्टा के द्वारा वाहर आ गये ।
वह देखकर सुनार घबराया। मन में अति पश्चात्ताप' हुआ। और ओघा-मुहपत्ती लेके खुद ही साधु धर्म को अंगीकार कर लिया। '. शरीरमें ताकत है तब तक आराधना कर लेना ठीकः है। फिर क्या होगा उसकी खबर नहीं है। . चार घडी रात वाकी रहे तब श्रावक-श्राविका जग के नमस्कार मंत्र का जाप करे । अात्म चिन्ता में तल्लोन बने । .. .
. देवलोक में कोई देवच्यवी जाय (यानी मर जाये) .. तो उसके स्थान में जो देव उत्पन्न होता है वह देव वहीं
की देवियों का स्वामी होता है । और देवियां च्यचे तो.