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प्रवचनसार-कणिका
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एक घटना वन गइ थी। महाराज जव पधारे थे तब लोनी लोने के जबला वहीं के बहों (मनका) घड़ रहा था । सुनि को आया जानकर के जवला वहीं के वहीं पटक के घर में गया था। जैसे ही वह रसोई घर में गया कि उसी समय पेड़ पर बैठे पक्षी ने जवला को खाने की वस्तु समझने वहां आके जवला चुग गया ।
मुनिके जाने वाद सुनार काम पर बैठा तो जवला (मनका) नहीं मिला । इससे उसने विचारा कि जवला कोई चुरा गया है । लेकिन साधु के सिवाय दूसरा कोई घर में नहीं आया है।
कंचन कामिनी के त्यागी साधु चोरी कर ही नहीं सकते हैं । तब फिर जवला गया कहां ?
जरूर साधु के वेशमें शैतान होना चाहिये। एमा विचार के वह साधु के पीछे दौड़ा।
महाराज ! आपका जरा काम है । पसा कहके साधु को फिर पीछे दुला लाया । मेतारज मुनि समझ गये। क्योंकि उनने पक्षी की सोने का जब चुगते देखा था।
सच्ची बात कहें तो पक्षी को सुनार मार डाले अथवा मरा डाले । इसलिये मौन रहे । . सुनारने पहले तो मुनिवर को समझाया। पीछे धम
काया । फिर भी मुनि मौन रहे । . . .मुनिका मौन देख के सुनार क्रोध में चढ गया। इसने चमड़े के टुकड़े को पानी में भिंगों के मुनि के माथापर (सिरपर: कचकचा के. वांध दिया।