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प्रवचनसार कर्णिका और फिर से इन मुनि की समता को कठिन कसौटी एक दिन हुई।
कंचनपुर नगर में दोपहर को यही सुनि गोचरी को निकले । राजारानी शतरंज खेल रहे थे । अचानक रानी की दृष्टि इन मुनि पर पड़ी। ये रानी पन मुनि की वहन थी।
अपने भाई की तप से तपी और कृश बनी काया को देखके इसकी आंखों में से आंसू आ गये । राजा यह देख रहा था । उसे शंका हुई। इस साधु को देखकर रानी रोई क्यों ? जरूर यह इसका प्रेमी होना चाहिये । इस शंका ने इसे विह्यल बना दिया। वह खेल बन्द करके उठ गया। सेवकों को आज्ञा दी कि उस पाखंडी साधुको पकड़के खाडा में उतार के शिरच्छेद करो।
सेवकों ने आज्ञा के अनुसार किया। सुनियो मार डाला । खुन का खावोचिया (गट्ठा) भर गया ।
लोही (खुन) से लथ पथ मुहपत्ती और ओघा को मांस पिंड मानके एक समली उठाके उड़ी ।
लेकिन यह खाने की वस्तु नहीं है यों समजके फेंक दिये । और वे भी राजमहल के बराबर चौक में ही गिरे।
रानी ने जब देखा तव इसे सक्त आघात लगा। उले खात्री हुई कि किसी दुष्ट मनुष्य ने सेरे भाई को मार डाला है। - रानी के आक्रन्द से राजा दौड़ आया। रानी ने कहा कि यही ओंधा मैंने मेरे भाई को वहोराया था।
राजा को अव. समझ में आयाकि जिस मुनिको मार