________________
व्याख्यान - तेईसवाँ
२९३
एक सुल्ला तुरन्त हो चौवटिया शेठको बुला लाया । अथ से इति तक की सब हकीकत शेठ से कही ।
शेठने कहा कि अब तो कल तुम सबकी आ गई । मुल्ला ने कहा शेठ ! इसी लिये तो तुमको काली रात में बुलाया है । अब कुछ रास्ता निकालो । और हम्हें बचाओ । चाहे खर्चा कुछ भी हो जाय ।
शेठने कहा कि खर्चा की छूट हो तो एक बात है । लाओ ! एक लाख सानामुहरें । तो ये गुन्हा तुम्हारे माथे है तो मैं मेरे माथे (सिरपर) ले लेता हूँ |
उन लोगों को तो यही चाहिये था। एक लाख सोनामुहरोंकी थैली शेट को दे दी ।
+
शेठने कहा अब तुम जरा भी नहीं घवराना । तुम सर्व शान्ति से पेट पे हाथ देके सो जाओ। मैं सब फोड़ लूंगा । वे सब जिस किसी तरह छूटे |
शेठ भी सोनामुहर और मुड़दा ले आये घर | शेठानी कहा ले ये दूसरी एक लाख सोनामुहर | पिटारा में रख दे |
से
शेठानी ने कहा कहांसे लाये ? शेठने कहा पहले तो लाया था सुई । ये लाया दोरा । अब जाता हूं आकाश को सांधने के लिये ।
ऐसा कहके शेठ तो वह सुढदा ले के कंधा पर डाल के घर के बाहर चले गये । फिरते फिरते गाँवके बाहर आके एक पेड़ के पास आके खड़े हो गये ।
वहां उनने देखा कि थोडी दूर पर मन्दिर के ओटला पर बैठे बैठे एक पोलिस जमादार गाँवकी चौकी कर रहा है ।