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प्रवचनसार कर्णिका
हमें कुछ भी करना बाकी नहीं रहता है। एसा मानने वाले साधु श्रावक ले भी खराब हैं ।
संसार के सगों के प्रति मोह जोव को राग मोहनीय वांधता है।
अप्रशस्त राग में बैठे मनुष्य को जिनवाणी से लाभ होता है। . वसंतऋतु विलस रही थी। राजकुमार मदन ब्रज अपनी बत्तीस पत्नियों के साथ उद्यान में वलन्तोत्सव उजर रहे थे यानी मना रहे थे।
इतने में तो इस राजकुमारकी नजर उद्यान के कौने में बैठे ध्यानमग्न त्यागी मुनि पर पडी। नम्रतापूर्वक इसने मुनि को चन्दन किया ।
मुनि को बाणी राजकुमार को अमृत लम लगी। सुनि के शब्दोले राजकुमार के खात्मा को जागृत किया । जाग गये आत्माने संसार को असार समझ के त्याग दिया।
युवान साधु सदनब्रह्मा एकदिन दोपहर को गौचरी के लिये गये।
बारह वारह वर्ष से परदेश गये पति के विरह में झूरती हुई एक सुन्दर युवती इन मुनि के भव्य मुख दर्शन से सुग्ध बन गई।
दासी इन मुनि को घर लाई। मुनिने धर्मलाभ की आशीप दी। - इस स्त्रीने मुनि से संसार के भोग विलास में पीछे
आके अपने संग में आनन्द-प्रमोद करने की खूब आजीजी (प्रार्थना) की।