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प्रवचनसार कर्णिका श्री महावीर परमात्मा कहने लगे कि हे गौतम ! त. केवली की आशातना न कर।
क्या सभी केवली बन गये ? गौतम ! तू जिसे दीक्षा देता है वह केवली वन जाता है। परन्तु तुझे मेरे प्रति अति राग होने से तुझे केवल नहीं होता है।
साहव ! मुझे कब होगा ? तुझे भी होगा। चिन्ता न कर।
भगवान श्री महावीर देव जय जय गौतम और तू कह के गौतम स्वामी को बुलाते थे तव तव गौतम स्वामी प्रसन्नता अनुभवते और आनन्द पाते थे।
आज तुमको "तू" शब्द अधिक अच्छा लगता है कि "तुम" शब्द अधिक अच्छा लगता है। अथवा "आप" शब्द अधिक अच्छा लगता है।
गुरु महाराज तुम्हें मान देके बुलावें ये सबसे अधिक अच्छा लगता है न ?
मान लेने की योग्यता प्राप्त किये बिना मान लेने की इच्छा करना क्या वह योग्य है ?
सुपुत्र रोज सुबह माता-पिता के पैरों में पड के आशीर्वाद मांगे । वडीलों के ( वडोंके) पैरों में गिरना. (झुकना) ये आर्यावर्त का नियम है।
सुनि आहार संज्ञाके विजेता होते हैं । आहार करने पर भी उसमें उनको रस नहीं होता। एसा भो बने । उसमें आसक्त बनना ये पाप है। पापका फल दुर्गति है । पाप किये बिना जीवन जी सको एसा सामर्थ्य दृढः । बनाओ।