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व्याख्यान - तेईसवाँ
२७५.
श्रेणिक महाराजा एक सुन्दर चित्रशाला बंधवा रहे थे । सब अच्छी तरह से तैयार हो गया । लेकिन मुख्य दरवाजा दो दो चार वनवाया । फिर भी गिर गया ।
जोशी ( ज्योतिपी) कहने लगा कि बत्तीस लक्षण पुरुष का भोग मांगता है । राजाने ढंढेरा पिटवा दिया । जो कोई बत्तीस लक्षणा को भोगके लिये अर्पण करेगा उसे राजाकी तरफ से भारी रकम मिलेगी । उसके बरावर सोना मिलेगा | एक गरीब ब्राह्मण और उसकी स्त्री दोनो पैसा के लोभमें अपने छोटे लडके अमरकुमार को देने के लिये तैयार हो गये । राजाकी तरफ से भारोभार ( पुत्रको बरावरी ) का साना देने का एलान था ।
विचारे अमरकुमारने कितनी ही आजीनी की (दया मांगी ) खूब रोया । लेकिन पत्थर दिल माँ-बाप नहीं पिगले । राजसेवक अमरकुमारको ले गये ।
होम हवन हो रहा था । ब्राह्मण वडे स्वरले मन्त्र चोल रहे थे । श्रेणिक राजा वहां विराजे थे । पूरा गाँव देखने को उसट पड़ा था ।
यज्ञको प्रचंड ज्वालायें देखके कंप रहे अमरकुमार को अचानक एक जैन सुनिके द्वारा सिखाया गया नवकार मन्त्र याद आ गया । खूव ही भक्ति भावसे इसने मन्त्र का जाप शुरू किया । और यह क्या ? चमत्कार हो गया ।
थोडी देरमें ही अमरको उठा के यज्ञकी भमकती ज्वालाओं में डाल देने का था । विचारा जलके भस्म हो जायगा । इस विचारसे देखनेवाले सभी की आँखें भीनी हो गई ' थी ' यानी सभी रो रहे थे। लेकिन क्या हो
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