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व्याख्यान-चाईसवाँ
२७३ ... सभी को जैनशासन का अनुरागी वनाऊं। सभी को
मोक्षमें भेजु । एसी भावना करने से तीर्थंकर नामकर्म — बंधता है।
__ मोहका विनाश करने के लिये साधु बनना है। पसा साधुपना प्राप्त करके भी जो आत्मा मोहको पंपालता है वह विचारा पामर है।
कमनसीवी है कि जिसे साधुपना की कदर नहीं है एले आत्मा की जगतमें कदर कौन करनेवाला है ? हाथमें रखे हुये रजोहरण की कीमत जो साधु नहीं समझे तो वैसे साधुओं की कीमत भी कौन करेगा ? स्वयं अविनीं तरह के दूसरों को विनीत बनाने की आशा रखना व्यर्थ है। ... स्व जीवन को सुन्दर वना के आत्म श्रेयमें आगे बढों यही शुभेच्छा।