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प्रवचनसार कणिका :
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तव घरके लभ्य कहेंगे कि खर्च कराके गया । लेकिन थे विचार नहीं करेंगे कि ये सुझे हजारों को मिल्कत देके गया । तो इसमें से थोड़ा सा खर्च हुआ तो क्या विगड़ गया।
वाल्यकाल में कोई दीक्षा ले तव दुनिया कहती है कि समझ विना दीक्षा लेना ठीक नहीं है। युवान होने के बाद लग्न करके दीक्षा लेतो लोग कहेगे कि दीक्षा लेनी थी तो लग्न ही क्यों किया? दो चार लड़के होने के बाद दीक्षा ले तो लोग कहेगे कि भरण पोपण करने की शक्ति नहीं इसलिये दीक्षा लेने निकल पड़ा है। .
वृद्ध होने के बाद दीक्षा लेतो लोग कहेगे कि देखा! . - घर में कुछ कामका नहीं इसीलिये साधु हो के चला । वहां जाके क्या करेगा ? पानी के घडा उपाड़ेगा।
महानुभाव ! साधुपने में पानी लाने में भी कर्म की निर्जरा होती है।
साधुपनाकी प्रत्येक क्रिया निर्जरा करने वाली है।
भूतकाल में क्षत्रिय लग्न करने के लिये स्वयं नहीं जाते थे। किन्तु अपनी तलवार भेजते थे। तव स्त्री समझती थी कि इनने तलवार के साथ पहले लग्न किया है। अब दूसरीवार मेरे साथ लग्न करते हैं । अर्थात ये पहले तलवार को साचवेगे फिर मुझे साचवेगे यानी • पहले रक्षा करेगें।
धर्मी मनुष्य लग्न के समय तय करे कि वैराग्य नहीं जगे वहां तक संसार चलाना है। वैराग्य जगे कि लग्न खत्म (त्याग) . . . . . .