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.... व्याख्यान-वाईसवाँ
२६७ . किसीने कुछ भी जवाब नहीं दिया। और लाचारी दिखाने के लिये सव नीचे ही देखने लगे। . .... थोडी देर के वाद महात्माने कहा कि खैर । तुममें से तो कोई भी इलको जिलाने के लिये तैयार हो एसा लगता नहीं है । तो फिर यह प्याला मैं ही पी लेता हूं।
.. सव इकदम हर्प के आवेशमें आ गये। और धन्यः .... है एसे परोपकारी महात्मा को एसा कहने लगे।
. महात्मा पानी पी गये और घर के बाहर निकल गये।
वह लडका भी खड़ा हो गया । और किसी से कुछ भी कहे बिना उन महात्मा के पीछे पीछे चला गया । क्योंकि उसे जो भ्रमणा थी वह खत्म हो गई। .
लडके को इस तरह महात्मा के पीछे जाता देखकर इस लडके के माँ-बाप वगैरह उसके पीछे दौडे । और कहने लगे कि हम्हें छोड के कहां जाता है ? हमारे हृदय में तेरे लिये कितनी लागणी (प्रेम) है उसका विचार कर। . . . लंडका वोला कि मेरे सच्चे स्नेही तो ये महात्मा ही हैं। उन्होंने मुझे जिन्दा किया है इस लिये अव तो मै इनका ही हूं। और एसा कहके वह लड़का पीछे.. फिरके देखने को भी नहीं खड़ा रहा। ..
समझदार मनुष्य मरते समय तक संसार में नहीं रहे । पुत्र घर वार को सम्हालने वाला तैयार हो जाय तो घर का वोझा उसे सोंप देना चाहिये । .
मृत्यु के समय कोई मनुष्य लम्बी बीमारी को भोगके मरे तो घर वाले कहेंगे कि मरा लेकिन सबकी सेवा लेके मरा । विमार हो इसलिये थोड़ा खर्च भी हो।।