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प्रवचनसार कर्णिका
तू चला जाय और हम जी सके एसा बन नहीं सकता । हमको विना मौत मार डालना हो तो तू जा । तेरे जीवन में ही हमारा जीवन है।
इस लड़के की स्त्रीने भी कहां कि हे नाथ ! तुम्हारे विना में किसी भी तरह जी नहीं सकु एसा नहीं है । एसी सब बातें सुनकर के इस लड़के का निर्णय ढीला पड़ गया। उसने महात्मा के पास जाकरके दातकी कि मेरे माता पिता आदि इस प्रकार कहते हैं ।।
महात्मा से उसने कहा कि मेरे विना मेरे माता पिता आदि नहीं जी सकते हैं। एसा उन सबका प्रेम मेरे ऊपर है।
महात्मा को लगा कि इस लड़के को इस बात का भ्रम है किन्तु उपदेश देने मात्र से उस का भ्रम दूर नहीं हो सकता।
इसले महात्मा ने लड़के से कहा कि तेरे ऊपर तेरे मां बाप तेरी स्त्री आदि का अगाध प्रेम हे एसा तू कहता है तो सुझे ना कहने की जरूरत नहीं है।
लेकिन तुझे उनकी परीक्षा करके फिर सच मानना चाहिये । लड़के ने कहां आप जैसा कहें वैसा करूं ।
महात्माने कहा कि तू यहां से सीधा तेरे घर जा । घर जाके तू इकदम जमीन ऊपर कृत्रिम (वनावटी) सूर्छावन्त वनके गिर जाना । - थोड़ी देर के बाद राडपाड़के (चिल्ला चिल्ला के) कहना कि मेरे पेट में बहुत वेदना हो रही है। मेरे से ये वेदना किसी भी तरह सहन नहीं हो सकती है। तेरे मां बाप वैद्य को बुलावेंगे। तेरा दुखावा दूर करने