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व्याख्यान-सातवाँ. - जगत के जीवों को दुःखका भय है परंतु पाप का भय नहीं है। जबतक पाप का भय नहीं लगे तवतक दुःख तो आनेवाला ही है। जो दुःख दूर करना हो तो पाप से वचो।
श्रावक के छत्तीस कृत्य (करने लायक) मन्हजिणाणं की सज्झाय में बताये हैं उन्हें भी समझ लेना चाहिये। ... आनुपूर्वी तीन प्रकार की है :-(१) पूर्वानपूर्वी (२) - पश्चानपूर्वी (३) अनानुपूर्वी । पहले से ही क्रमसर गिनना वह पूर्वानपूर्वी है । पीछे से गिनना वह पश्चानुपूर्वी है और आढुंअवछं यानी उलटा-सीधा गिनना वह अनानुपूर्वी कहलाती है।
नरक के जीव किसीको प्रत्यक्ष में मारते नहीं है। परंतु मारने का विचार मनमें लाने से पाप वांधते हैं । ... रागके दो प्रकार हैं :-(१) प्रशस्त और (२) अप्रशस्त । पौद्गलिक वस्तुका राग करना वह अप्रशस्त राग कहलाता है और देव, गुरु और धर्मके प्रति जो राग होता है उसे प्रशस्त राग कहते हैं।
हृदय में भरी हुई पापकी मलिनता को दूर करने के .. लिये संवत्सरी पर्व है। अपने पर्व मालमिष्टान्न खाने के • लिये नहीं होते किन्तु मालमिष्टान्न का त्याग करने के
लिये होते हैं । . . :. खुद देखे बिना किसी के ऊपर कलंक चढाना से
अभ्याख्यान कहते हैं। - संसार में बैठे हो इसलिये पाप तो होता ही है। .. मगर उदासीन भावसे करो।