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प्रवचनसार कर्णिका
अभवि आत्मा मोक्षका इच्छुक नहीं होता । वह संयम लेने के वाद उत्कृष्ट संयम पाले, तप करे लेकिन यह सब देवलोक के सुखकी प्राप्ति के लिए ही करता है । किन्तु मोक्ष के लिये नहीं करता है ।
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भरत महाराजाने अष्टापद ऊपर चौबीस तीर्थकरोकी सूर्तियाँ उन उन भगवान के अन्तिम भवके देह प्रमाण, शुद्ध रत्नों की बनाई थीं ।
रावण और मन्दोदरी अष्टापद तीर्थ की यात्रा करने के लिये आये । तव भगवानों की मूर्तियाँ देखकर अत्यन्त प्रसन्न चित्तवाले वन गए और भक्ति करने वैठे |
प्रभुके सन्मुख रावण वीणा इतनी सरल रीतसे बजाने लगा कि मानो विश्वका श्रेष्ठ में श्रेष्ठ वीणावादक ! इस तरहसे उज्वल भावको पैदा करे इस तरहसे वीणा बजाने लगा | उसके साथ रावण की पट्टरानी मन्दोदरी नृत्य करने लगी ।
मन्दोदरी अनेक प्रकार के हावभाव युक्त नृत्य करने में तल्लीन थी ।
मनुष्य जब नृत्य में एकाकार हो जाता है तब मानवी का सिर नहीं दिखता । ये नृत्यका प्रभाव है ।
यहाँ नृत्य में मन्दोदरी पकतान वन गई थी । उस समय एकाएक रावण की वीणाका एक तार टूट गया । स्वरलहरी को अस्खलित टिकी रखने के लिये, प्रिया के नृत्यमें खामी नहीं आने देने के लिये, प्राप्त भक्ति में वाधा नहीं होने देने के लिये तुरंत ही अपनी जांघ की नस काटके वीणाके टूटे हुए तारकी जगह रावणने सांध दी ।