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प्रवचनसार कणिका
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राजकुमार का प्रत्युत्तर सुनके महाराजा कहने लगे कि गईकाल अपनी नगरीके नगरशेठ के यहाँ चोरी हुई। उसमें तेरा हाथ हो एसा लगता है। इसलिये जो सत्य'.. हो वह कह दे। सत्य कहेगा तो अभय मिलेगा।
पिताजी ! मैं चोरी की कल्पना भी नहीं की। फिर चोरी करने की तो बात ही कहाँ ?
यह सुन करके क्रोधावेश में लाल-चोल बने हुए. महाराजाने मन्त्रीश्वर से कहा कि मोजडी हाजिर करों.।। मोजडी बताकर के पुष्पचूल से पूछा कि यह मौजडी किसकी है ? राजकुमारने कहा कि मेरी है। वह कहाँसे आई ? एसा सत्य पुरावा हाजिर देखने पुष्पचूल खमझः तो गया, फिर भी भावकी रेखा वइले विना कहने लगा कि किसी दुष्टये मेरी मोजडीका इस तरहसे उपयोग किया: हो, यह संभवित है।
राजाने कहा-यह नहीं हो सकता! प्रजा में एसी किसी की हिंमत नहीं कि सिंह की गुफामें हाथ डाले । यह तो केवल तेरा वचाव है। या तो गुन्हा कबूल कर यथया सिद्ध कर कि इसमें तेरा हाथ नहीं है। पुष्पचूल मौन रहा, मौनसे गुन्हा सावित होता है यह बात पुष्पचूल भूल गया ।
मन्त्री वर्गके साथ योग्य मसलत करके महाराजा गम्भीर बदनसे कहने लगे कि दुप्पचूल ! आजसे तेरा नाम पुष्पचूल के बदले चंकचूल चालू करता हूं और दश वर्ष तक तुझे देशनिकाल की सख्त सजा देता हूँ। तु चोवीस घंटे में नगरी छोड़ देना । राज्य सभामें सन्नाटा छा गया, हाहाकार मच गया ।